Sunday 23 February 2014

सोये रहोगे कब तक

कौन रोक पायेगा उस ज्वाला को
जो शुरू हुई थी एक चिंगारी कि तरह
पर चली है आज जलाने को यह दुनिया
किये बिना किसी रीती रिवाज़ कि परवाह

कौन रोक पायेगा उस तूफानी नदी को
जो शुरू हुई थी एक हिमनद के ज़रिये
पर आज चली है तबाह करने
पितृसत्ता कि खोखली जड़ों को

कौन रोक पायेगा उस चक्रवात को
जो शुरू था हवा के झोंके से
पर आज चली है मिटाने लिंग भेद को
लोक सत्ता का सही मतलब बताने

कौन रोक पायेगा, कौन रोक पायेगा
जब शुरू हो जायेगा एक परिवर्तन इस भ्रमांड में
जब जाग जायेगी हर वो सोई भावना
बदल जायेगी हर प्रथा, हर रसम

शुरू हो चुकी है यह कहानी
शायद अभी नहीं सुनी है तुमने
जब चलेगा संपूर्ण बदलाव का चक्र
सोये नहीं रेह पाओगे

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